Friday, June 6, 2014

ऐ राही, तू बस अब चलने की तैयारी कर

माना की तुझमें कमियां हैं,
पर जिनको मिला वो कहाँ के सिकंदर थे,
बंदर-बाँट मची है यहां,
तू खड़ा रहा बाहर बस और वो ख़ज़ाने के अंदर थे,

तूने ना भीख मांगी,
ना छीना ना धमकाया,
पर हक़ का मिलेगा यहां,
हुआ सोचना तेरा ज़ाया,

कुछ नियम हैं ज़रूर इस खेल में,
नियम तोड़ सब तख़्त पर चढ़े हैं,
आईने बेच रहा है तू यहां मगर देख,
यहां तो सब अंधे हुए पड़ें हैं,

मिलता तुझे तो कुछ है नहीं,
काम, चिंता और आशाओं के बीच तू जूझता है,
मिलेगा भी कैसे जब,
नियम के पालन के लिए ही सही, तू सवाल बड़े पूछता है,

सवाल पूछने और काम करने वालों को,
कब मिला है अपना हक़,
हां-में-हां मिलाने और पीठ खुजाने से,
सब मिल जाता है यहां बेशक,

बदल कर अपने को रहने को तो यहां,
रह सकता है मगर,
तू ना बदलेगा मालूम है मुझे,
सो ऐ राही, तू बस अब यहां से,
चलने की तैयारी कर

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